नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

गुरुवार, 22 जुलाई 2021

कच्चे खपरैल वाले घरों में

 

कच्चे खपरैल वाले घरों में

रहती थी इतनी जगह

कि छुप सकें तेज बारिश में

गाय, बैलों के साथ-साथ

कुत्ते, बिल्ली, चूहे जैसे

और भी जीव, जंतु

जो नहीं कर सकते अपनी

व्यवस्था स्वयं के लिए

रहती थी इतनी जगह

घर के एक कोने में

कि रुक सके और बना सके

अपने हाथ से अपना भोजन

भिक्षा मांगने वाला गरीब ब्राह्मण

रहती थी इतनी कि

आ जाएं 5-10 मेहमान भी अगर

एक साथ, तो भी नहीं पड़ती थी

माथे पर कोई शिकन

उलटे बढ़ जाता था उत्साह

उन्हें खिलने-पिलाने का

उनकी आवभगत करने का

मगर टीवी और मोबाइल के

इस आधुनिक दौर में

नहीं बची है वह जगह

न घर में और न लोगों के दिलों में

नहीं बचा है वह उत्साह

न वह अपनापन

जो अपने लोगों के लिए होता था

न जाने किसकी नजर लगी है

कि रहना चाहते हैं सब अकेले ही

एक ही घर में अजनबी जैसे...

                 (कृष्णधर शर्मा 20.7.2021)

19 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ जुलाई २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. आज का कटु सत्य । कोई भी आ जाय तो सबकी दिनचर्या बिगड़ जाती है अब ऐसी सोच हो गयी है ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आभासी दुनिया में लिप्त और लुप्त होता हमारा मानव समाज .. हौले - हौले .. ये कहता हुआ कि "परिवर्त्तन ही प्रकृति का नियम है।" .. बस यूँ ही ...

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन..
    कच्चे खपरैल वाले घरों में
    रहती थी इतनी जगह
    कि छुप सकें तेज बारिश में
    गाय, बैलों के साथ-साथ
    कुत्ते, बिल्ली, चूहे जैसे
    और भी जीव, जंतु
    जो नहीं कर सकते अपनी
    व्यवस्था स्वयं के लिए
    रहती थी इतनी जगह
    घर के एक कोने में
    कि रुक सके और बना सके
    अपने हाथ से अपना भोजन
    भिक्षा मांगने वाला गरीब ब्राह्मण
    रहती थी इतनी कि
    आ जाएं 5-10 मेहमान भी अगर
    एक साथ, तो भी नहीं पड़ती थी
    माथे पर कोई शिकन
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहद सुंदर लिखा आपने मन को छू गई

    जवाब देंहटाएं
  6. सही कहा अब टहाँ रहे वैसे लोग और वो कच्चे घर...
    बहुत ही सुन्दर।
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  7. स्वार्थी और असंवेदनशील का रोग लग गया है समाज में

    बीतें दिनों की याद सुहानी दिल में रह गयी है बस

    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  8. आपने मेरे मन की बात लिख दी है आपकी कविता बहुत अच्छी है

    जवाब देंहटाएं