नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 27 सितंबर 2021

पान मसाला, पैसा और अमिताभ बच्चन की सामाजिक जिम्मेदारी

 एक बहुत सीधा तर्क है कि एक व्यवसाय जो कुछ लोगों के लिए अच्छा है, क्या अकेला यही पर्याप्त कारण है कि उस वजह से बच्चन उसका समर्थन करेंगे। इस तरह तो बच्चन अपना अनुबंध बचाने के लिए वस्तुत: गुटका किंग और पान मसाला सेठों की ही बात कह रहे हैं। यह कुछ इस तरह बताया जा रहा है कि उनके कैंसरजनक उत्पादों पर किसी भी तरह के प्रतिबंध से कारखानों में नौकरियां घट जायेंगी, ऊपर और नीचे तक आपूर्ति और वितरण श्रृंखला ध्वस्त हो जायेगी।  

न्यूयॉर्क टाइम्स' पत्रिका में 13 सितंबर,1970 को नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री मिल्टन फ्रीडमैन ने लिखा था- 'कारोबार की सामाजिक जिम्मेदारी अपने मुनाफे को बढ़ाना है।' यह सबसे अधिक उद्धृत किए जाने वाले उद्धरणों में से एक है। तब से दुनिया बहुत आगे बढ़ गई है और फ्रीडमैन के इस विचार को कई विद्वानों, सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं ने सिरे से खारिज कर दिया है।

 व्यापार में आज कोई भी यह कहने के लिए खड़ा नहीं होगा कि उसका लक्ष्य सिर्फ अधिकतम लाभ कमाना है। लेकिन अमिताभ बच्चन ने ठीक यही कहा है, सिर्फ शब्दों में थोड़ा फेरबदल है।   सोशल मीडिया पर एक नाराज प्रश्नकर्ता ने इस मशहूर हिंदी फिल्म स्टार से पूछा कि उन्होंने पान मसाला के रूप में एक अवांछनीय उत्पाद का समर्थन क्यों किया है, बच्चन ने कहा कि उन्हें ऐसा करने के लिए भुगतान किया गया था। बच्चन की खासियत यह है कि वह हमेशा विनम्र, शांत और दोस्ताना होते हैं और इस मामले में भी उन्होंने ठंडे दिमाग से जवाब दिया। वे कहते हैं कि यह (पान मसाला) एक ऐसा व्यवसाय है जो कई लोगों को लाभ पहुंचाता है। वे आगे कहते हैं कि इसलिए मैं अपने व्यवसाय के बारे में भी सोचता हूं, और मुझे इसके लिए पैसा मिलता है और फिल्म उद्योग में काम करने वाले अन्य लोगों को भी ऐसे ही पैसा मिलता है। एक सादा और सरल जवाब- मामला बंद!  यह विवाद और आगे बढ़ता है। उसने बाद में एक और टिप्पणी में बच्चन से पूछा गया कि क्या वह अपनी पोती को इस विज्ञापित ब्रांड की पेशकश करेंगे जिस विज्ञापन और ब्रांड को बढ़ावा देने का खतरनाक प्रभाव पड़ता है? इस सवाल-जवाब के बाद से कुछ ही दिनों में इस मामले में बच्चन की काफी बदनामी हो गई जो इस बात का स्वस्थ संकेत है कि आम नागरिक अपने नायकों के ऐसे कामों को किस नजरिए से देखते हैं।   

एक बहुत सीधा तर्क है कि एक व्यवसाय जो कुछ लोगों के लिए अच्छा है, क्या अकेला यही पर्याप्त कारण है कि उस वजह से बच्चन उसका समर्थन करेंगे। इस तरह तो बच्चन अपना अनुबंध बचाने के लिए वस्तुत: गुटका किंग और पान मसाला सेठों की ही बात कह रहे हैं। यह कुछ इस तरह बताया जा रहा है कि उनके कैंसरजनक उत्पादों पर किसी भी तरह के प्रतिबंध से कारखानों में नौकरियां घट जायेंगी, ऊपर और नीचे तक आपूर्ति और वितरण श्रृंखला ध्वस्त हो जायेगी। दुर्भाग्यवश तंबाकूजन्य उत्पादों को भारत में एक खाद्य उत्पाद के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यह चिंता की बात है तथा सरकार को इस मसले से निपटना चाहिए और यह कोई ऐसी बात नहीं है जिसके जरिए बच्चन अपना बचाव कर सकें।   

मार्केट रिसर्च कंपनी आईएमएआरसी ग्रुप के मुताबिक पान मसाला की सालाना बिक्री 45,000 करोड़ रुपये के आसपास होती है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एक पान मसाला  समूह ने एक राजनीतिक दल को 200 करोड़ रुपये चंदा दिया था, जो यह बताता है कि जहर बेचने के कारोबार में कितना मुनाफा होता है और अपनी पहुंच, अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए कितनी राशि खर्च की जा सकती है। सरसरी तौर पर जांच करेंगे तो  पता चलेगा कि कई पान मसाला उत्पादकों पर करोड़ों की आबकारी चोरी के मामले दर्ज किए गए हैं।   यह सब तब हुआ जब विभिन्न माध्यमों ने बताया कि पान मसाला उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की वेबसाइट पर भारत में तंबाकू नियंत्रण पर एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस (ओएसएमएफ), जो मुंह के कैंसर से पहले की स्थिति है, खास तौर पर युवाओं के बीच एक नई महामारी के रूप में उभर रहा है। रिपोर्ट में भारत में युवा लोगों के बीच ओएसएमएफ में नाटकीय वृद्धि का कारण गुटका और पान मसाला चबाने को माना गया है। 

भारत में तंबाकू के सेवन का सबसे बड़ा तरीका तंबाकू चबाना है और जिसमें पान मसाला शामिल है। यहां तक कि अगर पान मसाला के एक विशेष पैकेट में तंबाकू नहीं होता है तो यह सुपारी व अन्य उत्तेजक और टैनिन चबाने की लत को बढ़ाता है। इस आदत में तम्बाकू को शामिल करना कुछ ही समय की बात होती है।  

शोधकर्ताओं, ज्योत्सना चांगरानी और फ्रांसिस्का गैनी ने पाया है कि भारत में मुंह के कैंसर की बीमारी लगभग 30 प्रतिशत सुपारी-तंबाकू, करीब 50 फीसदी सुपारी-तंबाकू चबाने और धूम्रपान के संयुक्त उपयोग के कारण होती है। उन्होंने शोध में पाया कि अभी हाल तक पान  और गुटका में तंबाकू के उपयोग को मुंह के कैंसर के लिए एकमात्र कारण के रूप में जिम्मेदार ठहराया गया था। हालांकि हाल ही में सुपारी को मुंह के कैंसर के लिए स्वतंत्र रूप से जिम्मेदार ठहराया गया है। तंबाकू के साथ सुपारी का सेवन गले और भोजन नलिका के कैंसर का कारण बनता है।  बुरी बात यह है कि कैंसर होने के कारणों में पान मसाला अपेक्षाकृत नया घटक है और यह हाल ही में इस घातक गिरोह में शामिल किया गया है। बमुश्किल तीन दशक पहले यह उत्पाद बाजार में आया था और तब से आक्रामक मार्केटिंग के तौर-तरीकों से इसकी बिक्री में लगातार वृद्धि हुई है। इसका मतलब है कि हम ब्रांडों, संकुल, टिन और अन्य स्टॉक कीपिंग यूनिट्स कोड के मिश्रित विविध घटकों के माध्यम से कैंसर के प्रसार के लिए बाजार में सक्रिय हैं।  भारत के दुनिया के दूसरे सबसे बड़े तंबाकू उपभोक्ता होने की पृष्ठभूमि में अमिताभ बच्चन इस बात का आश्वासन दे सकते हैं कि उन्होंने लोगों के स्नेह, चैरिटी और अपने प्रभावी सेलिब्रिटी स्टेट्स का उपयोग उन नौकरियों से ज्यादा जान लेने के लिए किया है जो उन्होंने कथित तौर पर बचाई हैं। इस मुद्दे की वजह से यह मामला इतना बढ़ गया है।  

 एक बड़ी समस्या उस वक्त होती है जब बच्चन प्रभावी ढंग से कहते हैं कि यह एक वैध व्यवसाय है और वे इसे बढ़ावा देने और उसका प्रचार कर अपना पैसा बनाने के हकदार हैं। यह तर्क इस धारणा के विपरीत है कि कोई भी चीज जो कानूनी तौर पर सही है, वह नैतिकता की जरूरतों को पूरा करता है। एक बहुत अधिक अमीर और सुप्रसिद्ध व्यक्ति की आम नागरिकों के प्रति अंसवेदनशीलता नागरिकों के बढ़ते क्रोध का कारण बना है। यह अन्य फिल्मी सितारों के समाज के लिए किए कुछ शानदार कामों को अनदेखा करने वाली हरकत है; और फिर इससे यह संदेश भी जाता है कि पैसा बनाना एक अधिकार है- चाहे उसकी कोई भी कीमत देनी पड़े।  

एक आखिरी समस्या फिल्म 'दीवार' में बच्चन के मशहूर डायलॉग के समान है, जब वह अपने अलग रह रहे भाई और पुलिस अधिकारी से पूछते हैं- 'मेरे पास संपत्ति है, बैंक में पैसा, बंगला है, कार है... तुम्हारे पास क्या है?' फिल्म में उनके भाई का जवाब (मेरे पास मां है) अमर हो गया है। लाखों लोग इसे आज भी याद करते हैं। यह बच्चन ही हैं जो अपनी पंक्तियों को भूल गए।  परदे का यह स्टार वास्तविक जीवन में भी नायक बन सकता है अगर वह इस विज्ञापन से हट जाए और कहे कि पान मसाला मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य और अधिकारों की रक्षा के लिए बॉलीवुड के भीतर एक आंदोलन चलाये। बच्चन ऐसा कर सकते हैं। सवाल यह है कि क्या वे ऐसा करेंगे?

लेखक-जगदीश रत्तनाणी  

समाज की बात Samaj Ki Baat कृष्णधर शर्मा

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