नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

रविवार, 29 सितंबर 2024

थैले में वजन

बाजार से लौटते हुए व्यक्ति के

थैले में बहुत वजन होता है

किराना सामान, फल-सब्जियों के

अलावा भी बहुत कुछ होता है

बाजार से लौटते हुए व्यक्ति के थैले में

घरवाली कि पसंद, बच्चों की उम्मीद

सहित बहुत कुछ कैद होता है थैले में

बाजार से लौटे हुए व्यक्ति के

             कृष्णधर शर्मा 29.9.24

अक्तूबर का महीना

गर्मी की तपती चिलचिलाती धूप

और बरसात की बेतरह उमस के बाद

जब आता है अक्तूबर का महीना

मिलती है थोड़ी शांति

शरीर को भी और आत्मा को भी

और किसान को भी

जो बेहद थक चुके होते हैं इन

चार-पाँच महीनों में 

अपनी खेती-बाड़ी के काम से

            कृष्णधर शर्मा 29.9.24

शुक्रवार, 27 सितंबर 2024

हमने भी उनको छोड़ दिया

 

जिन्हें नहीं निभाने थे रिश्ते हमने भी उनको छोड़ दिया

जो न बन सके अपने कभी उनसे मुंह हमने भी मोड़ लिया

                             कृष्णधर शर्मा 25.9.24

सोमवार, 23 सितंबर 2024

जातक कथाएं-नरेंद्र शर्मा

 "एक खरगोश नारियल के पेड़ के नीचे आराम से सो रहा था, नींद में उसे यह ख्याल आया कि यह धरती फटने वाली है, इस धरती के फटने से सब कुछ नष्ट हो जाएगा। यह हरा-भरा जंगल धरती के फटते ही नीचे पातालदेश में पहुंच जाएगा। इसके साथ ही हम सब मारे जाएंगे।  

डर के मारे खरगोश का सारा शरीर कांप उठा। उसने समझ लिया कि अब उसका आखिरी वक्त करीब आ रहा है, इसी बीच नारियल के पेड़ से दो-चार नारियल एकदम से टूटकर नीचे आ गिरे। उनके नीचे गिरते ही एक जोरदार धमाका सा हुआ जिसे सुनकर पहले से ही डरा हुआ खरगोश और डर गया। यह धमाका सुनते ही वह समझ गया कि वास्तव में ही धरती फटने लगी है...। 

फिर क्या था, वह पागलों की भांति पेड़ के नीचे से उठकर भागा और साथ ही चीखने लगा- बचाओ, बचाओ। मौत आ रही है, बचाओ। उसे देखकर जंगल के और सारे जानवर भी भागने लगे और सब चिल्लाते जा रहे थे कि भागो-भागो धरती फटने वाली है, सब जान बचाकर भागो... (जातक कथाएं-नरेंद्र शर्मा)



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बुधवार, 18 सितंबर 2024

इंसान को इंसान बनाया जाए

अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए,

जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए.!!


जिसकी ख़ुशबू से महक जाय पड़ोसी का भी घर,

फूल इस क़िस्म का हर सिम्त खिलाया जाए.!!


आग बहती है यहाँ गंगा में झेलम में भी,

कोई बतलाए कहाँ जाके नहाया जाए.!!


प्यार का ख़ून हुआ क्यों ये समझने के लिए,

हर अँधेरे को उजाले में बुलाया जाए.!!


मेरे दुख-दर्द का तुझ पर हो असर कुछ ऐसा,

मैं रहूँ भूखा तो तुझसे भी न खाया जाए.!!


जिस्म दो होके भी दिल एक हों अपने ऐसे,

मेरा आँसू तेरी पलकों से उठाया जाए.!!


गीत उन्मन है, ग़ज़ल चुप है, रूबाई है दुखी,

ऐसे माहौल में ‘नीरज’ को बुलाया जाए.!!


 गोपालदास नीरज 

शनिवार, 7 सितंबर 2024

आचार्य चतुरसेन की श्रेष्ठ कहानियां

 इसके बाद दोनों प्राणी आंखों ही आंखों में हंसते हैं। अनूपा पेड़ की घनी छाया में कुटिया के द्वार पर पड़ी छोटी-सी खटिया पर लल्लू को रासुलाकर, पेड़ की डाल में भोजन का कटोरदान लटकाकर पति को सहायता देने काछा कसकर पहुंच जाती है। 

आनंद और उल्लास से भरे हुए ये दोपहर कर तक बहुत-सा काम कर डालते हैं। इसके बाद जब वे कुटिया के पास आकर ती सुख की नींद सो रहे लल्लू को दोनों आंख भरकर देखते हैं, तो मानों अपनी जी, आत्मा की जागृत् ज्योति को देखते हैं। कटोरदान खुलता है और दोनों प्राणी नों वह अमृत के समान भोजन आनंद से खाकर शीतल, ताज़ा पानी पीकर तृप्त ने हो जाते हैं। अनूपा समझती है- मेरा पति है, पुत्र है, खेत है, घर है, हल से हैं, बैल हैं और गाय है; जगत् में मुझ-सा सुखी कौन !  

रघुनाथ समझता है-मेरी अनूपा है, लल्लू है, खेत है, घर है, बैल है, हल है; मेरे बराबर राजा कौन ! जगत् के प्रांगण में उन हरे-भरे, शांत और एकांत खेतों के दूसरी ओर नगर बसे हैं। वहां बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं हैं। वहां मोम की मूर्ति-सी रमणियां रहती हैं, जिनके पांव मखमल पर छिलते हैं। वहां संपदा, सोना, रत्न की बिखर रहे हैं। वहां ऐश्वर्य, सम्पत्ति और सौंदर्य का मेह बरस रहा है। पर रघुनाथ ने यह कभी नहीं जाना, अनूपा ने भी नहीं। वे न कहीं जाते, न आते । ; उनकी सब सामाजिक और आत्मिक तृप्ति वहीं हो जाती थी। वही छोटा-सा संसार उनका विश्व और वही पति-पत्नी, पुत्र, हल, बैल, गाय, घर, खेत विभूति थी।   (आचार्य चतुरसेन की श्रेष्ठ कहानियां)



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