नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

हमनें देखा है

हमने देखा है बहारों को
आते हुये
हमने देखा है भौंरों को
गुनगुनाते हुये
हमने देखा है तितलियों को
इठलाते हुये
हमने देखा है कलियों को
शरमाते हुये
हमने देखा है फूलों को
मुस्कुराते हुये
हमने देखा है पतझड़  भी
आते हुये.  (कृष्ण धर शर्मा,2003)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें