नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

मंगलवार, 31 मई 2022

उनसे भी वफ़ा ही चाही

 

हमने वफ़ा की और उनसे भी वफ़ा ही चाही

अफ़सोस कि उन्हें बेवफाई में ही मज़ा आता है

                     कृष्णधर शर्मा 30.5.22

गुरुवार, 19 मई 2022

कातिल को शौक था

 

कातिल को शौक था गला रेतकर मारने का

अपनी भी नसें मगर फौलादी ही निकलीं

                      कृष्णधर शर्मा 18.05.22

रविवार, 24 अप्रैल 2022

'फन एंड लर्न' के कांसेप्ट पर आधारित शिक्षा प्रणाली है 'जौली फोनिक’, जानिये इसके बारे में विस्‍तार से

 प्री स्कूल स्तर पर छोटे बच्चों को पढ़ाने के लिए पूरी दुनिया में 'फन एंड लर्न' के कांसेप्ट पर आधारित शिक्षा प्रणाली 'जौली फोनिक' लोकप्रिय हो रही है। 

इंदौर स्थित यू.सी.किंडीज स्कूल 'जौली फोनिक' विशेषज्ञ स्कूल है। इस स्कूल की सेवाएं पिछले 2 साल से इंदौर शहर के गोपुर कॉलोनी पर भी उपलब्ध हो रही है। 

क्या है 'जौली फोनिक' ?

गोपुर कॉलोनी स्थित की डायरेक्टर मीता बाफना के अनुसार 'जौली फोनिक' को एक प्रकार से ऐसी शिक्षा पद्धति कहा जा सकता है जिसमें 2 साल से 7 साल के बच्चों को फ्लैश कार्ड, साउंड और बॉडी एक्शन के माध्यम से बोलना एवं पढऩा सिखाया है। उदाहरण के तौर पर टीचर जब 'बी' अल्फाबेट दिखाती है तो साथ में उसका साउंड 'ब' भी एक्शन के साथ बताती है, इससे बच्चे बहुत सारे शब्द पढऩा एवं बोलना खेल-खेल में सीख जाते हैं। '

जौली फोनिक' विशेषज्ञ स्कूल है 

'यू.सी.किंडीज' इंदौर स्थित 'यू.सी.किंडीज' स्कूल जौली फोनिक' विशेषज्ञ स्कूल है। यूसी किंडीज यूसी इंटरनेशनल कॉर्पोरेशन का एक हिस्सा है। यह 5 देशों - भारत, मिस्त्र, चीन, मलेशिया और ईरान में वैश्विक उपस्थिति के साथ एक अंतराष्ट्रीय प्रीस्कूल है। 'यू.सी.किंडीज' स्कूल की सेवाएं पिछले 2 साल से इंदौर शहर की गोपुर कॉलोनी पर भी उपलब्ध हो रही है। गोपुर कॉलोनी वाली 'यू.सी.किंडीज' की खासियत गोपुर कॉलोनी वाली 'यू.सी.किंडीज' की खासियत की बात करें तो पाएंगे कि यहां बच्चों को सामान्य एबीसीडी की शिक्षा देने की बजाय बच्चों को जौली फोनिक के माध्यम से अक्षर ज्ञान दिया जाता है। यहां आर्ट और साइंस को विशेष तरीके से रूबरू करवाया जाता है जिससे बच्चे प्रैक्टिकल लर्निंग करते हैं। यहां बच्चों के मानसिक और शारीरिक सुरक्षा का विशेष ध्यान दिया जाता है। यहां बच्चों को कोरोना महामारी से बचाने के लिए सभी सुरक्षात्मक उपाय किए गए हैं। सभी शिक्षकों ने अपना कोविड वैक्सीनेशन करवा लिया है। इस स्कूल की डायरेक्टर मीता बाफना सुनिश्चित करती हैं कि बच्चों को सुरक्षात्मक माहौल के साथ बिना किसी मानसिक तनाव के आनंदमयी तरीके से अक्षर ज्ञान दिया जाए। 

नवोदित शेखावत  

साभार- नई दुनिया 

समाज की बात samaj ki baat

आत्महत्या नहीं है अवसाद व समस्याओं का हल, जीवन शैली में बदलाव करने से मिलेगा हल

 छात्रों द्वारा किसानों द्वारा प्रसिद्ध सितारों व उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों की आत्महत्या की खबरें हमें इस विषय पर सोचने को मजबूर करती हैं।   

हाल के दिनों में कोविड-19 के कारण उपजी भयावह परिस्थितियों जैसे बेरोजगारी गरीबी अकेलापन घरों से बेघर होना आदि समस्याओं ने खुदकुशी की प्रवृत्तियों में इजाफा किया है। एनसीआरबी द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में बेहद चिंताजनक आंकड़े सामने आए हैं। यह दुनिया में होने वाली मौतों का दसवां सबसे बड़ा कारण है हमारे देश में ही हर साल एक लाख से अधिक लोग आत्महत्या करते हैं।   

छात्रों द्वारा किसानों द्वारा प्रसिद्ध सितारों व उच्च पदों पर बैठे अधिकारियों द्वारा की गई आत्महत्या की खबरें हमें इस विषय पर सोचने को मजबूर कर देती हैं। आजकल की बढ़ती चकाचौंध की दुनिया हमें अकेलेपन का शिकार बना रही है। यही अकेलापन धीरे-धीरे अवसाद में तब्दील होकर आत्महत्या जैसे दुष्परिणाम ला रहा है। आत्महत्या के कई कारण हो सकते हैं जैसे तनावपूर्ण जीवनशैली मानसिक रोग घरेलू समस्याएं आदि।   हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरूकता की कमी है व सरकार का भी इस ओर कोई रुझान नहीं है। 

कई बार कुछ सामाजिक कारणों से भी व्यक्ति ऐसा कदम उठाता है जैसे क्लास में प्रथम ना आना, किसी प्रतिष्ठित पद की परीक्षा को पास न कर पाना, नौकरी ना मिल पाना आदि इस समस्या से निपटने के लिए हमें इसके मूल कारण जानकर उनका समाधान ढूंढना चाहिए।  

 हमें शारीरिक व मानसिक स्तर पर कुछ आदतों व जीवनशैली में बदलाव करने की भी आवश्यकता है, जैसे-व्यायाम ध्यान योग खेलकूद आदि करना पौष्टिक आहार लेना समय पर सोना व उठना। नशीले पदार्थों के सेवन से बचना हमेशा सकारात्मक रहना सोशल मीडिया का उपयोग एक सीमा तक करना आदि। टेक्नोलॉजी की इस दुनिया में हम अपने परिवार, दोस्तों व प्रकृति सभी से दूर होते जा रहे हैं। हमें समय निकालकर इनके साथ वक्त बिताना चाहिए अपनी बातों व परेशानियों को साझा करना चाहिए। जरूरत पड़ने पर हमें मनोचिकित्सक की सलाह लेने से भी संकोच नहीं करना चाहिए तभी इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।  

अंकिता श्रीवास्तव  

साभार- नई दुनिया 

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बुधवार, 13 अप्रैल 2022

दुनिया भी अजीब है

 

क्यों जलते हैं दूसरों से दुनिया भी अजीब है

मुबारक हो तुमको महल हमे तो झोपडी ही अजीज है

                      कृष्णधर शर्मा 12.04.22

झोपडी ही अजीज है

 

क्यों जलते हैं दूसरों से दुनिया भी अजीब है

मुबारक हो तुमको महल हमे तो झोपडी ही अजीज है

                      कृष्णधर शर्मा 12.04.22

मंगलवार, 22 मार्च 2022

सुभद्रा कुमारी चौहान की लोकप्रिय रचनाएँ- सुभद्रा कुमारी चौहान

 उन्हें ख़्याल आया कि पहले जब अभी उनकी नींद रही होती, उन्हें गली में से एक भिखारी बाबा की आवाज़ सुन जाया करती थी-'उठ जाग मुसाफिर भोर हुई। अब रात कहाँ जो सोवत है।' वह उतनी सुरीली नहीं थी, जितनी सुबह उठते ही कानों में पड़नी चाहिए परन्तु इतनी फटी हुई, कर्कश अथवा चिल्लाहट भरी भी नहीं थी, जैसी भिखारी ध्यान खींचने और तरस का पात्र बनने के लिए बना लेते हैं.

 बहुत दिनों से उन्होंने इस आवाज़ को नहीं सुना था। कौन जानता है कब उस आवाज़ का दम टूट गया होगा। मर मरा गया होगा कहीं बस से टकराकर, गाड़ी के नीचे आकर या किसी बम विस्फोट में। आजकल हर क़दम पर जूते के नीचे कोई न कोई बम फटने का इन्तज़ार कर रहा होता है। और फिर ऐसे लोगों के मरने की ख़बर न तो आकाशवाणी से प्रसारित होती है, न कोई शोक पुस्तिका पर हस्ताक्षर करने आता है। सर्वधर्म शान्ति पाठ भी नहीं होता। जिन्दा है तब भी आधे मुर्दों में शामिल। मर गए तो मर गए। (सुभद्रा कुमारी चौहान की लोकप्रिय रचनाएँ- सुभद्रा कुमारी चौहान)



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मंगलवार, 8 मार्च 2022

जलता हुआ गुलाब - तरसेम गुजराल

 पंजाब आग में जल रहा है। उन लोगों के मुनाफे बढ़ रहे हैं जिनके पास लम्बी बाँहें है, पैसा है, उन्होंने अपने व्यापार की शाखाएँ दिल्ली में भी मजबूत कर ली हैं। 'मोनिका सिल्क स्टोर' वालों की दिल्ली वाली दुकान भी अच्छी चलने लगी है। इधर हम हैं कि दिल्ली की दुकानों की पगड़ियाँ सुनकर हैरान हो रहे हैं, जैसे ट्रांजिस्टर समझकर हाथ में उठाया हो और वह बम की शक्ल में फट गया हो । मंगल अपना ठय्या दिल्ली ले जाने की स्थिति में नहीं था। इसलिए वह चाहता था कि हरियाणा में किसी जगह अपने पाँव जमा सके । 

घर छोड़ना आसान होता है क्या ? धरती के जिस टुकड़े ने आपको प्यार दिया हो, धरती के जिन लोगों के बीच आपकी दोस्तियाँ, मजाक और उद्गार पनपे हों, जिसके साथ आपकी तमाम छोटी-बड़ी सफलताएँ बिफलताएँ जुड़ी हों, वह धरती आपके तन-मन में खुशबू की तरह रच जाती है। आदमी यन्त्र नहीं हो जाता, न पत्थर ही कि सैंतीस साल तक विकसित होते रहे सम्बन्धों के एकदम पार चला जाए। मंगल के जहन में पंजाब छोड़ जाने की बात जोर तो मार रही थी लेकिन अपने शहर के बराबर उसे कोई दूसरा शहर जँचता भी नहीं था। (जलता हुआ गुलाब - तरसेम गुजराल)



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बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

साक्षात्कार- नरेन्द्र कोहली

 "एक निर्धन तपस्वी के लिए इतने धनी लोगों का सम्बन्धी होना जोखिम की बात है; और तुमने सुना ही होगा, देवि! मैंने अनेक राक्षसों का वध किया है।" राम कोमल स्वर में बोले, "ताड़का और सुबाहु भी मेरे हाथों ही मरे थे। रावण अवश्य ही मुझे अपना शत्रु मानता होगा। सम्भवतः किसी समय रावण से मेरा आमने-सामने युद्ध हो ।”

 शूर्पणखा ने राम की पूरी बात भी नहीं सुनी। राम की इच्छा की दिशा पहचानते ही जैसे वह उस ओर बह निकली, "युद्ध होता है, हो राम! कोई भय नहीं है। युद्ध किसी से भी हो, पत्नी तो अपने पति की ओर से ही लड़ेगी। तुम्हें कदाचित ज्ञान न हो कि मैंने अनेक शस्त्रास्त्रों का ज्ञान अपने भाई कुम्भकर्ण से पाया है; और योद्धा के रूप में रावण से तनिक भी हीन नहीं हूं। युद्ध की स्थिति में मेरी सेनाएं तुम्हारे पक्ष से रावण के विरुद्ध लड़ेंगी। स्वयं मैं तुम्हारी ओर से लडूंगी।..." शूर्पणखा को लगा कि वह रावण से अपने प्रेमी-द्रोह का प्रतिशोध ले रही है, "मैं तुम्हें रावण की वीरता, उसकी सेना, उसके शस्त्रों का एक-एक भेद बताऊंगी। उसकी व्यूह-रचना को खंड-खंड कर दूंगी। मैं इस राक्षस साम्राज्य को ध्वस्त कर दूंगी और अपने हाथों से तुम्हें लंका के सिंहासन पर बैठाकर तुम्हारा राज्याभिषेक करूंगी..." (साक्षात्कार- नरेन्द्र कोहली)



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सोमवार, 14 फ़रवरी 2022

वही काम आया

 

स्टेपनी समझकर जिसे अनदेखी करते रहे

बुरा वक्त आने पर वही काम आया

                     कृष्णधर शर्मा 12.04.22

रविवार, 13 फ़रवरी 2022

खुश नहीं है कातिल मेरा

 

क़त्ल करके भी खुश नहीं है कातिल मेरा

जाने कौन सी हसरत उसकी बाकी रह गई

                       कृष्णधर शर्मा 12.02.22

शास्त्रीय नृत्य

 भारत में प्राचीन काल से एक समृद्ध और प्राचीन परम्‍परा रहा है । विभिन्‍न कालों की खुदाई, शिलालेखों, ऐतिहासिक वर्णन, राजाओं का वंश परम्‍परा तथा कलाकारों, साहित्यिक स्रोतों, मूर्तिकला और चित्रकला से व्‍यापक प्रमाण उपलब्‍ध होते हैं । पौराणिक कथाएं और दंतकथाएं भी इस विचार का समर्थन करती है कि भारतीय कला के धर्म तथा समाज में नृत्‍य ने एक महत्‍वपूर्ण स्‍थान बनाया था । जबकि आज प्रचलित ‘शास्‍त्रीय’ रूपों या ‘कला’ के रूप में प्ररिचित विविध नृत्‍यों के विकास और निश्चित इतिहास को सीमांकित करना आसान नहीं है ।

साहित्‍य में पहला संदर्भ वेदों से मिलता है, जहां नृत्‍य व संगीत का उदगम है । नृत्‍य का एक ज्‍यादा संयोजित इतिहास महाकाव्‍यों, अनेक पुराण, कवित्‍व साहित्‍य तथा नाटकों का समृद्ध कोष, जो संस्‍कृत में काव्‍य और नाटक के रूप में जाने जाते हैं, से पुनर्निर्मित किया जा सकता है । शास्‍त्रीय संस्‍कृत नाटक (ड्रामा) का विकास एक वर्णित विकास है, जो मुखरित शब्‍द, मुद्राओं और आकृति, ऐतिहासिक वर्णन, संगीत तथा शैलीगत गतिविधि का एक सम्मिश्रण है । यहां 12वीं सदी से 19वीं सदी तक अनेक प्रादेशिक रूप हैं, जिन्‍हें संगीतात्‍मक खेल या संगीत-नाटक कहा जाता है । संगीतात्‍मक खेलों में से वर्तमान शास्‍त्रीय नृत्‍य-रूपों का उदय हुआ ।

खुदाई से दो मूर्तियां प्रकाश में आई- एक मोहनजोदड़ों काल की कांसे की मूर्ति और दूसरा हड़प्‍पा काल (2500-1500 ईसा पूर्व) का एक टूटा हुआ धड़ । यह दोनों नृत्‍य मुद्राओं की सूचक हैं । बाद में नटराज आकृति के अग्रदूत के रूप में इसे पहचाना गया, जिसे आम तौर पर नृत्‍य करते हुए शिव के रूप में पहचाना जाता है ।

हमें भरतमुनि का नाटय-शास्‍त्र शास्‍त्रीय नृत्‍य पर प्राचीन ग्रंथ के रूप में उपलब्‍ध है, जो नाटक, नृत्‍य और संगीत की कला की स्रोत पुस्‍तक है । आमतौर पर यह स्‍वीकार किया जाता है कि दूसरी सदी ईसापूर्व- दूसरी सदी ईसवीं सन् इस कार्य का समय है । नाटय शास्‍त्र को पांचवें वेद के रूप में भी जाना जाता है । लेखक के अनुसार उसने इस वेद का विकास ऋृग्‍वेद से शब्‍द, सामवेद से संगीत, यजुर्वेद से मुद्राएं और अथर्ववेद से भाव लेकर किया है । यहां एक दंतकथा भी है कि भगवान ब्रह्मा ने स्‍वयं नाअय वेद लिखा है, जिसमें 36,000 श्‍लोक हैं ।

नाटय-शास्‍त्र में सूत्रबद्ध शास्‍त्रीय परम्‍परा की शैली में नृत्‍य और संगीत नाटक के अलंघनीय भाग हैं । नाटय की कला में इसके साभी मौलिक अंशों को रखा जाता है और कलाकार स्‍वयं नर्तक तथा गायक होता है । प्रस्‍तुतकर्त्‍ता स्‍वयं तीनों कार्यों को संयोजित करता है । समय के साथ-साथ जबकि नृत्‍य अपने आप नाटय से अलग हो गया और स्‍वतंत्र तथा विशिष्‍ट कला के रूप में प्रतिष्ठित हुआ ।

प्राचीन शोध-निबंधों के अनुसार नृत्‍य में तीन पहलुओं पर विचार किया जाता है- नाटय, नत्‍य और नृत्‍त । नाटय में नाटकीय तत्‍व पर प्रकाश डाला जाता है । कथकली नृत्‍य–नाटक रूप के अतिरिक्‍त आज अधिकांश नृत्‍य-रूपों में इस पहलू को व्‍यवहार में कम लाया जाता है । नृत्‍य मौलिक अभिव्‍यक्ति है और यह विशेष रूप से एक विषय या विचार का प्रतिपादन करने के लिए प्रस्‍तुत किया जाता है । नृत्‍त दूसरे रूप से शुद्ध नृत्‍य है, जहां शरीर की गतिविधियां न तो किसी भाव का वर्णन करती हैं, और न ही वे किसी अर्थ को प्रतिपादित करती हैं । नृत्‍य और नाटय को प्रभावकारी ढंग से प्रस्‍तुत करने के लिए एक नर्तकी को नवरसों का संचार करने में प्रवीण होना चाहिए । यह निवरस हैं- श्रृंगार, हास्‍य, करूणा, वीर, रौद्र, भय, वीभत्‍स, अदभुत और शांत ।

सभी शैलियों द्वारा प्राचीन वर्गीकरण- तांडव और लास्‍य का अनुकरण किया जाता है । तांडव पुरूषोचित, वीरोचित, निर्भीक और ओजस्‍वी है । लास्‍य स्‍त्रीयोचित, कोमल लयात्‍मक और सुंदर है । अभिनय का विस्‍तारित अर्थ अभिव्‍यक्ति है । यह अंगिक, शरीर और अंगों; वाचिक, और कथन; अहार्य, वेशभूषा और अलंकार; और सात्विक, भावों और अभिव्‍यक्तियों के द्वारा सम्‍पादित किया जाता है ।

भरत और नंदीकेश्‍वर- दो प्रमुख ग्रंथकारों ने नृत्‍य का कला के रूप में विचार किया है, जिसमें मानव शरीर का उपयोग अभिव्‍यक्ति के वाहन के रूप में किया जाता है । शरीर (अंग) के प्रमुख मानवीय अंगों की सिर, धड़, ऊपरी और निचले अंगों के रूप में तथा छोटे मानवीय भागों (उपांगों) की ढोड़ी से लेकर भवों तक चेहरे के सभी भागों तथा अन्‍य छोटे जोड़ों के रूप में पहचान की जाती है ।

नाटय के दो अतिरिक्‍त पहलू प्रस्‍तुतीकरण और शैली के प्रकार हैं । यहां प्रस्‍तुतीकरण के दो प्रकार हैं, जिनके नाम हैं- नाटयधर्मी, जो रंगमंच का औपचारिक प्रस्‍तुतीकरण है और दूसरा लोकधर्मी कई बार लोक, यर्थाथवादी, प्रकृतिवादी या प्रादेशिक के रूप में अनुवादित । शैली या वृत्ति को चार भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है- कैसकी, लास्‍य पहलू के संचार में ज्‍यादा अनुरूप, दक्ष गीतिकाव्‍य; अरबती, ओजस्‍वी पुरूषोचित; सतवती जब रासों का चित्रण किया जाता है तब अक्‍सर इसका उपयोग किया जाता है और भारती (शाब्दिक अंश) ।

शताब्दियों के विकास के साथ भारत में नृत्‍य देश के विभिन्‍न भागों में विकसित हुआ । इनकी अपनी पथृक शैली ने उस विशेष प्रदेश की संस्‍कृति को ग्रहण किया; प्रत्‍येक ने अपनी विशिष्‍टता प्राप्‍त की । अत: ‘कला’ की अनेक प्रमुख शैलियां बनीं; जिन्‍हें हम आज भरतनाटय, कथकली, कुचीपुड़ी, कथक, मणिपुरी ओर उड़ीससी के रूप में जानते हैं । यहां आदिवासी और ग्रामिण क्षेत्रों के नृत्‍य तथा प्रादेशिक विविधताएं हैं, जो सरल, मौसम के हर्षपूर्ण समारोहों, फसल और एक बच्‍चे के जन्‍म के अवसर से सम्‍बन्धित हैं । पवित्र आत्‍माओं के आह्वान हौर दुष्‍ट आत्‍माओं को शांत करने के लिए भी नृत्‍य किए जाते हैं । आज यहां आधुनिक प्रयोगात्‍मक नृत्‍य के लिए भी एक सम्‍पूर्ण नव निकाय है ।

साभार- संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार 

समाज की बात Samaj  Ki  Baat 

 


गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

विभाजित सवेरा - मनु शर्मा

 स्वराज के पहले हमने कैसे-कैसे सपने देखे थे, कैसी-कैसी कल्पनाएँ की थीं। जैसे परी देश का जल मिल जाएगा, जिसे छिड़कते ही सारा दुःख-दारिद्रय दूर हो जाएगा, किसी प्रकार का अभाव नहीं रहेगा। ट्रेनों में यात्रा करने के लिए टिकट नहीं लेना पड़ेगा, क्योंकि ट्रेनें तो अपनी हो जाएँगी। न कोई पेट भूखा रहेगा और न कोई खेत सूखा। गाँव की बूढ़ी रमदेई काकी तो अजीब 'खयाली पुलाव' पकाती थी—'कोठिला अनाज रही, पूरन हर काज रही। सोरह रुपया क नथ रही, झुलनी झुलत रही।'

 हमें क्या मालूम था कि सपने ही सपने रह जाएँगे, हमें क्या मालूम था कि आजादी के पहले जैसा था वैसा ही रह जाएगा। वैसे ही सग्गड़वाले सग्गड़ खींचते रहेंगे और रिक्शेवाले रिक्शे। वैसे ही सुमेर चाचा दिन भर 'नून, तेल, लकड़ी' बेचता रहेगा। पीपा वैसे ही सीढ़ी कंधे पर लेकर और मिट्टी के तेल का कनस्तर हाथ में लटकाए गली के सरकारी लैंपों को शाम को जलाता और सुबह बुझाता रहेगा। 

अगर कुछ बदलेगा तो केवल सरकारें, यदि बदलेंगे तो छोटे सरकार और लाला जगजीवन लाल ऐसे अमन सभाई लोगों के चेहरों के मुखौटे। उनके सिरों पर गांधी टोपियाँ सवार हो जाएँगी। पहले वे 'लॉन्ग लिव द किंग' बोलते थे, अब गांधी- जवाहर " की जय बोलने लगेंगे। (विभाजित सवेरा - मनु शर्मा)



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बुधवार, 19 जनवरी 2022

अपराजेय- श्यामसुंदर भट्ट

 "माँ, मुझे इन दो दिनों में ही समझ आ गई कि मेरे जीवन का उद्देश्य क्या है। उस कार्य को पूरा करने के लिए मुझे घर तो छोड़ना ही पड़ेगा।"  

"कौन सा कार्य, पुत्र ?" 

"स्वार्थी सत्ताधारियों का विनाश जब तक स्वार्थी तत्त्व सत्ता पकड़कर जनसामान्य का दोहन स्व-हित में करता रहेगा आपका पुत्र राम आराम से नहीं बैठ सकेगा।"

 'ब्राह्मण होकर कब तक शस्त्र उठाएगा ?" 

'माँ, शस्त्र का तो उपयोग ही रक्षा करना होता है। लुटता-पिटता आदमी किसे अपनी व्यथा सुनाएगा? मेरे दादाजी को विश्वास था कि सत्ता पर बैठा आदमी संवेदनशील होगा। उन्होंने सत्ताधीशों को समझा-बुझाकर जनसामान्य के हित में शासन संचालन की बात कही थी। उन्हें भरोसा था कि सत्ताधीश उनकी बात सुनेंगे; किंतु उन्हें ही अपने जीवनकाल में यह आभास हो गया कि एक बार शासन के सुखों का उपभोग करने के बाद कोई भी व्यक्ति न तो प्रजा का भला सोचता है, न अपना आसन छोड़ता है। वह सभी प्रकार के छल-छद्म रचकर अपने वंश को सत्ता में बनाए रखने का पूरा प्रयत्न करता है। मेरे दादाजी ऋचीक ऋषि अपना पूरा जोर लगाकर भी सत्ताधारियों के दुर्गुणों को दूर नहीं कर सके। "  

" तो क्या तू अकेला इनसे लड़ता रहेगा ?" 

"माँ, मैं अकेला नहीं हूँ। मैं सत्ताधीशों को समझाने नहीं जाऊँगा। मैं जाऊँगा उन दलित-गलित लोगों के पास, जिन्हें प्राय: भेड़-बकरी समझा जाता है। मैं उस कुचले हुए वर्ग को अपने पैरों पर खड़ा करूँगा।" (अपराजेय- श्यामसुंदर भट्ट)



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सोमवार, 10 जनवरी 2022

विलियम शेक्सपीयर की सर्वश्रेष्ठ कहानियां- नरेश किंगर

 तीसरी आकृति बोली, “अन्य सभी हवायें मेरे शासन में हैं, मैं उन बन्दरगाहों एवं दिशाओं पर भी शासन करती हूं, जिनका पता नाविक दिक्सूचक (कम्पॉस) से पता लगाते हैं। मैं उसका सारा खून निचोड़ लूंगी और उसे घास के समान सुखा दूंगी। मैं उसकी आंखों से नींद छीन लूंगी, और वह एक अभिशप्त जीवन व्यतीत करेगा। वह धीरे-धीरे सूखता चला जाएगा। उसका जहाज डूबेगा तो नहीं, परन्तु वह भयंकर तूफानों से बरबाद हो जाएगा।" 

तभी उनके कानों में ढोल बजने की आवाज पड़ी। आवाज सुनते ही तीसरी आकृति कहने लगी, "मैं ढोल की आवाज सुन रही हूं। इससे साफ जाहिर है कि मैकबैथ युद्ध से विजयी होकर लौट रहा है। " (विलियम शेक्सपीयर की सर्वश्रेष्ठ कहानियां- नरेश किंगर)



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शुक्रवार, 3 दिसंबर 2021

वज्रांगी- वीरेंद्र सारंग

 "मैंने जो विचार किया है उसे बताता हूँ आप सुनें-आर्यों ने आर्य-संस्कृति और देवों ने देव-संस्कृति की स्थापना कर अपनी प्रगति कर रहे हैं। मैंने भी रक्ष-संस्कृति बनाई है। इस रक्ष-संस्कृति के सभी जन राक्षस कहलाएंगे। दानव, दैत्य, असुर, निशाचर, पिशाच जैसे सम्बोधन देकर आर्यों ने हमें नीच, दास कहा, हीनता का बोध कराते हैं ये शब्द। अब ये सभी राक्षस हुए। राक्षस रक्षा करेगा। हम अपना अभियान आरम्भ तो करें परन्तु राक्षस बनकर जो हमारी अधीनता स्वीकार करेगा, हम उनकी रक्षा करेंगे। शवर, किरात, निषाद, वानर, नाग, रीछ, कोल, भील, मुंडा, संथाल, गन्धर्व, किन्नर, यक्ष, चारण, ग्राद्ध आदि जितने आदिवासी हैं, ग्रामणी हैं, अधिपति हैं इन पर अपना अधिकार करना और रक्ष-संस्कृति के मूल्यों को स्थापित करना है। यही हमारा प्रथम कार्य होगा।" ...और सभी राक्षस हो गए। 

रावण ने छोटे-छोटे मांडलिक राज्यों को अपने अधीन कर लिया। रावण जिन ग्रामों को अपने अधीन करते, रक्ष का परचम फहरा देते। ग्रामों से दो से पाँच युवक रावण की सेना में ले लिये जाते। अब रावण कई अधिपतियों के स्वामी बन गए थे। जयी रावण कन्धे पर परशु रखे रक्ष-संस्कृति की स्थापना हेतु अनन्त यात्रा पर चल चुके थे। (वज्रांगी- वीरेंद्र सारंग)



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