नमस्कार,आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757
रविवार, 31 मार्च 2019
स्वीपर और संभ्रांत
शुक्रवार, 29 मार्च 2019
पल्लेदार
शनिवार, 23 मार्च 2019
सिख गुरु गाथा-जगजीत सिंह
"गुरुजी ने कहा, "दोनों ही करतार की आज्ञा के अनुसार अस्तित्व में आये हैं। चाहे हिंदू हो या मुसलमान, दोनों की उत्पत्ति उसी करतार से हुई है। दोनों की राह अलग-अलग हैं, लेकिन मंजिल एक है- एको हुकुम वरतै सभ लोई। एकसु ते सभ ओपति होइ।। राह दोवै खसमु एको जाणु। गुर के सबदि हुकम पछाणु।। सगल रूप वरन मन माही। कहु नानक एको सालाही।। (सिख गुरु गाथा-जगजीत सिंह)
#साहित्य_की_सोहबत #पढ़ेंगे_तो_सीखेंगे
#हिंदीसाहित्य #साहित्य #कृष्णधरशर्मा
Samajkibaat समाज
की बात
मंगलवार, 19 मार्च 2019
हिन्दी साहित्य की भूमिका
दुर्भाग्यवश हिंदी साहित्य के अध्ययन और लोक चक्षु गोचर करने का भार जिन विद्वानों ने अपने ऊपर लिया है, वे भी हिंदी साहित्य का संबंध हिंदू जाति के साथ ही अधिक बतलाते हैं और इस प्रकार अनजान आदमी को दो ढंग से सोचने का मौका देते हैं: एक यह कि हिंदी साहित्य एक हतदर्प पराजित जाति की संपत्ति है, इसलिए उसका महत्त्व उस जाति के राजनीतिक उत्थान-पतन के साथ अंगांगि भाव से संबद्ध है, और दूसरा यह कि ऐसा न भी हो, तो भी वह एक निरंतर पतनशील जाति की चिंताओं का मूर्त प्रतीक है, जो अपने आपमें कोई विशेष महत्त्व नहीं रखता। मैं इन दोनों बातों का प्रतिवाद करता हूँ और अगर ये बातें मान भी ली जाएँ तो भी यह कहने का साहस करता हूँ कि फिर भी इस साहित्य का अध्ययन करना नितांत आवश्यक है, क्योंकि दस सौ वर्षों तक दस करोड़ कुचले हुए मनुष्यों की बात भी मानवता की प्रगति के अनुसंधान के लिए केवल अनुपेक्षणीय ही नहीं, बल्कि अवश्य ज्ञातव्य वस्तु है। ऐसा करते मैं इस्लाम के महत्त्व को भूल नहीं रहा हूँ, लेकिन जोर देकर कहना चाहता हूँ कि अगर इस्लाम नहीं आया होता तो भी इस साहित्य का बारह आना वैसा ही होता जैसा आज है।
अपनी बात को ठीक-ठीक समझाने के लिए मुझे और भी हजार वर्ष पीछे लौट जाना पड़ेगा। आज के हिंद समाज में आज से दो हजार वर्ष पहले से लेकर हजार वर्ष पहले तक के हजार वर्षों में ग्रंथ लिखे गए, उनकी प्रामाणिकता में बाद में चलकर कभी कोई संदेह नहीं किया गया और उन्हें ही यथार्थ में हिन्दू धर्म का मेरुदंड कह सकते हैं। मनु और ज्ञातवल्क्य की स्मृतियाँ सूर्यादि पाँचों सिद्धांत ग्रंथ, चरक और सुश्रुत की संहिताएँ न्यायादि छहों दर्शन सूत्र प्रसिद्ध महाभाष्य आदि कोई भी प्रामाणिक माना जानेवाला ग्रंथ क्यों न हो, उसकी रचना संकलन या रूप प्राप्ति सन् ईस्वी के दो ढाई सौ वर्ष इधर उधर की ही है। उसके बाद की चार पाँच शताब्दियों तक इन निर्दिष्ट आदर्श का बहुत प्रचार होता रहा और इसी प्रचार काल में संस्कृत साहित्य के अनमोल रत्नों का प्रादुर्भाव हुआ। अश्वघोष, कालिदास, भद्रबाहु, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, कुमारिल, शंकर, दिड्नाग, नागार्जुन आदि बड़े-बड़े आचार्यों ने इन शताब्दियों में उत्पन्न होकर भारतीय विचारधारा को अभिनव समृद्धि से समृद्ध किया। वेद अब भी आदर के साथ मान्य समझे जाते थे, पर साधारण जनता में उनकी महिमा नाम गोत्र में ही प्रतिष्ठित रही।
अगर आप भारतवर्ष के मानचित्र में उस अंश को देखें, जिसकी साहित्यिक भाषा हिंदी मानी जाती है तो आप देखेंगे कि यह विशाल क्षेत्र एक तरफ तो उत्तर में भारतीय सीमा को छुए हुए हैं, जहाँ से आगे बढ़ने पर एकदम भिन्न जाति की भाषा और संस्कृति से संबंध होता है और दूसरी तरफ पूर्व की ओर भी भारतवर्ष की पूर्व सीमाओं को बनाने वाले प्रदेशों से सटा हुआ है। पश्चिम और दक्षिण में भी वह एक ही संस्कृत पर भिन्न प्रकृति के प्रदेशों से सटा हुआ है। भारतवर्ष का ऐसा कोई भी प्रांत नहीं है, जो इस प्रकार चौमुखी प्रकृति और संस्कृति से घिरा हुआ हो। इस घिराव के कारण उसे निरंतर भिन्न- भिन्न संस्कृतियों और भिन्न-भिन्न विचारों के संघर्ष में आना पड़ा है। पर जो बात और भी ध्यानपूर्वक लक्ष्य करने की है वह यह है कि यह ‘मध्यदेश’ वैदिक युग से लेकर आज तक अतिशय रक्षणशीलता और पवित्र्याभिमानी रहा है। एक तरफ तो भिन्न विचारों और संस्कृतियों के निरंतर संघर्ष ने और दूसरी तरफ रक्षणशीलता और श्रेष्ठत्त्वाभिमान ने इसकी प्रकृति में इन दो बातों को बद्धमूल कर दिया है-एक अपने प्राचीन आचारों से चिपटे रहना पर विचार में निरंतर परिवर्तन होते रहना, और दूसरे धर्मों, मतों, संप्रदायों और संस्कृतियों के प्रति सहनशील होना। अब देखा जाए कि हिंदी साहित्य के जन्म होने के पहले कौन-कौन से आचार-विचार या अन्य उपादन इस प्रदेश के समाज को रूप दे रहे थे।
इस बात के निश्चित प्रमाण हैं कि सन् ईसवी की सातवीं शताब्दी में युक्तप्रांत, बिहार, बंगाल, आसाम, और नेपाल में बौद्ध धर्म काफी प्रबल था। यह उन दिनों की बात है, जब इस्लाम घर्म के प्रवर्तक हजरत मुहम्मद का जन्म ही हुआ था। बौद्ध धर्म के प्रभावशाली होने का सबूत चीनी यात्री हुएंत्सांग के यात्रा-विवरण में मिलता है। यह भी निश्चित है कि वह बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय से विशेष रूप से प्रभावित था, क्योंकि उत्तरी बौद्ध धर्म यदि हीनयानीय शाखा का भी था तो भी महायान शाखा के प्रभाव से अछूता नहीं था। सातवीं शताब्दी के बाद उस धर्म का क्या हुआ, इसका ठीक विवरण हमें नहीं मिलता, पर वह एकाएक गुम तो नहीं हुआ होगा। उस युग के दर्शनग्रंथों काव्यों, नाटकों आदि से स्पष्ट ही जान पड़ता है कि ईसा की पहली सहस्राब्दी में वह इन प्रांतों में एकदम लुप्त नहीं हो गया था।
इधर हाल में जो सब प्रमाण संगृहीत किए जा सके हैं, उनसे इतना निःसंकोच कहा जा सकता है कि मुसलमानी आक्रमण के आरंभिक युगों में भारतवर्ष से इस धर्म की एकदम समाप्ति नहीं हो गई थी। हम आगे चलकर देखेंगे कि इन प्रदेशों के धर्ममत, विचारधारा और साहित्य पर इस धर्म ने जो प्रभाव छोड़ा है, वह अमिट है। लेकिन जब मैं ऐसा कहता हूँ तो प्रभाव शब्द का जो अर्थ समझता हूँ उसको ध्यान में रखना चाहिए। मैं यही नहीं कहता कि हिंदी भाषी प्रदेश का जन समुदाय उन दिनों बौद्ध था। वस्तुतः सारा समाज किसी भी दिन बौद्ध था या नहीं, यह प्रश्न काफी विवादास्पद है। कारण यह है कि बौद्ध धर्म संन्यासियों का धर्म था, लोक के सामाजिक जीवन पर उसका प्रभुत्व कम ही था। जिस प्रकार आज के नागा संप्रदाय को देखकर कोई विदेशी यात्री कह सकता है कि भारतवर्ष में नागा संप्रदाय खूब प्रबल है, परंतु यह बात सच होते हुए भी इसकी सचाई के साथ सामाजिक जीवन का गहरा संबंध नहीं है। इसी प्रकार चीनी यात्री के यात्रा विवरण का भी विचार होना चाहिए।
(हजारी प्रसाद द्विवेदी)
आर्थिक आंकड़ों में सरकारी हस्तक्षेप का आरोप
आर्थिक समाचार पत्रों में विगत 15 व 16 मार्च को दो समाचार प्रमुखता से छाए रहे। पहला, देश-विदेश के अर्थशास्त्रियों द्वारा आर्थिक आंकड़ों में मोदी सरकार द्वारा हस्तक्षेप को लेकर चिंता व्यक्त करने संबंधित समाचार था। दूसरा, भारत के शेयर बाजारों में पूरे सप्ताह निवेशकों द्वारा जोरदार की गई खरीदारी से आए उछाल से निवेशकों द्वारा कई गुना मुनाफा कमाए जाने की चर्चा रही। पहला समाचार, भारतीय अर्थशास्त्रियों एवं छात्रों के बीच अधिक चर्चा का विषय रहा। देश-विदेश के जाने माने 108 अर्थशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों द्वारा संयुक्त बयान में आर्थिक आंकड़ों में मोदी सरकार द्वारा हस्तक्षेप को लेकर चिंता जाहिर करते हुए सांख्यिकी संगठनों की स्वतंत्रता बहाल करने की अपील की गई थी। इन अर्थशास्रियों को सन्देह है कि केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन ने मोदी सरकार के दबाव के कारण 2016-17 की जीडीपी में वृद्धि अनुमान को पहले के मुकाबले 1.1 प्रतिशत बढ़ाकर 8.2 प्रतिशत किया है। इन अर्थशास्रियों को यह भी सन्देह है कि नेशनल सेम्पल सर्वे के 2017-18 के श्रम बल सर्वेक्षण आंकड़ों को लोकसभा चुनाव के सम्पन्न होने तक जानबूझ कर सार्वजनिक किए जाने से रोका गया है। बयान पर हस्ताक्षर करने वाले इन अर्थशास्त्रियों में देश-विदेश के शैक्षणिक एवं शोध संस्थानों से जुड़े हुए नामी-गिरामी अर्थशास्री व समाजशास्सी शामिल हैं। इनमें अमेरिका के जेम्स बॉयस, कनाडा के पैट्रिक फ्रांकोइस, तथा भारत के राकेश बसंत, सतीश देशपांडे, आर. रामकुमार, हेमा स्वामीनाथन, रोहित आजाद प्रमुख हैं।
इन अर्थशास्रियों ने बयान में कहा है कि जनहित की नीतियां बनाने और जानकारी भरे सामाजिक विमर्श के लिए आंकड़ों को वैज्ञाानिक तरीकों से जुटाकर, उनका विश्लेषण उनके समय से जारी करना जनता की सेवा के समान है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि सांख्यिकी जुटाने वाली और विश्लेषण करने वाली इन संस्थाओं की विश्वनीयता बनी रहे। विदेशों में इन संस्थाओं को पेशेवर स्वायत्ता दी जाती है।
ओडिशा में संबलपुर स्थित राज्य सरकार के गंगाधर मेहर विश्वविद्यालय के प्लेटनम जुबली समारोहों की शृंखला में वाणिज्य एवं प्रबंधन विभाग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सेमीनार अन्य स्थानीय कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के सिलसिले में मैं 14 मार्च से 16 मार्च की दोपहर तक संबलपुर में था। उद्यमिता विकास विषय पर विश्वविद्यालय की सेमीनार में उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि, पूर्ण अधिवेशन के सभापति तथा प्रथम सत्र में प्रमुख वक्ता, इन तीन सत्रों में उद्बोधनकर्ता के रूप में मुझे निमंत्रित किया गया था। सभी सत्रों में स्थानीय छात्र-छात्राओं की भी बड़ी सक्रिय भागीदारी रही। सत्रावसान के बाद जलपान के समय कुछ शिक्षकों ने मुझे स्थानीय समाचारपत्रों में प्रकाशित 108 अर्थशास्रियों की अपील दिखाते हुए पूछा कि क्या मैं छत्तीसगढ़ इकानॉमिक एसोसियेशन के अध्यक्ष होने के नाते इन अर्थशास्रियों के समर्थन में हस्ताक्षर अभियान प्रारंभ करूंगा। मेरा उत्तर था कि इन प्रमुख अर्थशास्रियों ने व्यक्तिगत हैसियत से बयान पर हस्ताक्षर किए हैं। इसलिए मेरा अध्यक्ष के रूप में अभियान चलाने का कोई इरादा नहीं है। वहां के शिक्षकों ने अर्थशास्रियों की इस अपील के सन्दर्भ में सवाल पूछे थे जिसमें उन्होंने भारत के सभी अर्थशास्रियों, सांख्यिकीविद् और स्वतंत्र शोधकर्ताओं से अपील की थी कि वे सरकार द्वारा प्रतिकूल आंकड़ों को दबाने की प्रवृत्ति के खिलाफ आवाज उठाने तथा सांख्यिकी संगठनों की संस्थागत स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए दबाव डालने के लिए उनका सार्वजनिक रूप से समर्थन करें।
अनौपचारिक चर्चा के समय उपस्थित वरिष्ठ प्राध्यापकों ने उन प्रबुद्ध अर्थशास्त्रियों द्वारा अपने बयान को देश-विदेश के मीडिया को सार्वजनिक किए जाने पर अप्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इस समय भारत और पाकिस्तान के बीच जो मीडिया वार चल रहा है, इन अर्थशास्त्रियों ने पाकिस्तान को अनायास ही भारत के विरूद्ध यहां की अर्थव्यवस्था के बारे में मीडिया प्रोपेगंडा की सामग्री प्रदान कर दी है, जो इन अर्थशास्रियों के बयान को वहां के मीडिया कवरेज मिलने से जाहिर होता है।
उल्लेखनीय है कि भारत के मीडिया में पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों के समर्थन के वर्णन के साथ-साथ इमरान खान सरकार की खस्ता वित्तीय स्थिति का प्रमुखता से जिक्र किया जाता है। उसी प्रकार चीन की विकास दर में गिरावट का भी भारतीय मीडिया में अच्छा स्थान मिलता है। अनौपचारिक चर्चाओं में वाणिज्य एवं मैनेजमेंट के वरिष्ठ शिक्षकगणों की 108 अर्थशास्त्रियों द्वारा उनके बयान को मीडिया पर सार्वजनिक किए जाने की आलोचना करने के बाद ही चर्चा की दिशा शेयर बाजार में आए उछाल की ओर मुड़ गई। इन प्राध्यापकों का कहना था कि अर्थव्यवस्था का मजबूती और विकास की सही दिशा का सूचक संवेदी सूचकांक सेंसेक्स है। उनका कहना था कि जिस तरह से मार्च महीने में शेयर बाजार में उछाल आया है, वह देश विदेश के करोड़ों छोटे-बड़े निवेशकों भारतीय कंपनियों के शेयरों में भारी मात्रा में निवेश का परिणाम है। इन प्राध्यापकों का कहना था कि शेयर बाजार में पैसा लगाना जुआ या सट्टा नहीं है। इसके लिए अर्थव्यवस्था की मजबूती और राजनैतिक स्थिरता की वर्तमान स्थिति एवं भावी संभावनाओं को अध्ययन की जरूरत होती है।
स्वयं के अध्ययन या स्टॉक मार्केट के विशेषज्ञों की सलाह पर संस्थागत व छोटे निवेशक करोड़ों रुपये का निवेश करते हैं और अर्थव्यवस्था की कमजोरी की हालत में बिकवाली करते हैं। बम्बई स्टॉक एक्सचेंज का 30 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स मार्च के पहले सप्ताह के अंतिम कारोबारी दिन के मुकाबले 15 मार्च को 1353 बिन्दु की जोरदार उछाल के साथ 38,000 बिन्दु पार कर बन्द हुआ। एक सप्ताह में 3.7 प्रतिशत की सेंसेक्स में हुई वृद्धि 6 माह के बाद नजर आई। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का 50 शेयरोंवाला सूचकांक निफ्टी 391 बिन्दु अर्थात 3.5 फीसदी तेजी के साथ 11,427 पर बन्द हुआ। नरेन्द्र मोदी सरकार की वापसी की संभावनाओं को देखते हुए निवेशक अच्छे प्रतिफल देने वाले शेयरों में हर दिन करोड़ों रुपये निवेश करते रहे।
इस सप्ताह सेंसेक्स की चोटी की 10 कंपनियों में से 8 कंपनियों का बाजार पूंजीकरण कुल मिलाकर 1.4 लाख करोड़ रुपए बढ़ा है। 18 मार्च के प्रात: सत्र में सेंसेक्स 38,000 बिन्दु के पार चल रहा है। मोदी सरकार की जीत की संभावनाओं को देशकर विदेशी संस्थागत एवं पोर्टफोलियो निवेशक 11 मार्च से हर दिन शेयरों की जोरदार खरीदी कर रहे हैं। शेयर बाजार ही नहीं इस सप्ताह डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
(डॉ. हनुमंत यादव)
समाज की बात -Samaj Ki Baat
कृष्णधर शर्मा - Krishnadhar Sharma
भारत में प्रयोग होने वाले खेत नापने के फार्मूले
नापने का
पैमाना
1 Gaz (एक गज)
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= 1 Yard (एक यार्ड)
= 0.91 Meters (0.91 मीटर) = 36 Inch (36 इंच) |
1 Hath (एक हाथ)
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=½ Gaz (आधा गज)
= 18 Inch (18 इंच) |
1Gattha (एक गट्ठा)
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= 5 ½ Hath (साढे पांच
हाथ)
= 2.75 Gaz (पौने तीन गज) = 99 Inch (99 इंच) |
1 Jareeb (जरीब)
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= 55 Gaz (55 गज)
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1 Unwansi (एक उनवांसी)
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=24.5025 Sq Inch (24.5025 वर्ग इंच)
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1 Kachwansi (एक कचवांसी)
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=20 Unwansi (20 उनवांसी)
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1 Biswansi ( एक
बिसवांसी)
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=20 Kachwansi (20 कचवांसी)
= 1 Sq. Gattha (एक वर्ग गट्ठा) = 7.5625 Sq.Yard (7.5625 वर्ग गज) = 9801 Sq Inch (9801 वर्ग इंच) |
1 Bissa (एक बिस्सा)
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=20 Biswansi (20 बिस्वांसी)
= 20 Sq.Gattha (20 वर्ग गट्ठा) |
1 Kaccha Bigha (एक कच्चा बीघा)
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= 6 2/3 Bissa (6 2/3 बिस्से:)
= 1008 Sq.Yard and 3Sq Feet (1008 वर्ग गज और 3वर्गफुट) = 843 Sq. Meters (843 वर्ग मीटर) |
1 Pucca Bigha (एक पक्काf बीघा)
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= 1 sq. Jareeb (एक वर्ग जरीब)
= 3 Kaccha Bigha (तीन कच्चे बीघे) =20 Bissa (20 बिस्सें) = 3025 Sq. Yard (3025 वर्ग गज) = 2529 Sq. Meters 2529 वर्ग मीटर) = 27225 Sq. Feet (27225 वर्ग फुट) =165x165 Feet |
1 Acre (एक एकड)
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= 4840 Sq. Yard (4840 वर्ग गज)
= 4046.8 Sq.Meters (4046.8 वर्ग मीटर) = 43560 Sq. Feet (43560 वर्ग फुट) = 0.4047 Hectare (0.4047 हेक्टेयर) |
1 Hectare (एक हेक्टेयर)
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= 2.4711 Acre (2.4711 एकड)
= 10000 Sq meters ( 10000 वर्ग मीटर |
भू-मीत (कृष्ण धर शर्मा - Krishnadhar Sharma)
Samaj ki Baat - समाज की बात
शनिवार, 16 मार्च 2019
एक चिथड़ा सुख-निर्मल वर्मा
"क्या तुमने उन्हें देखा है-उन बँगलों को? इसे लुटियेन्स का शहर कहा जाता है, रायसीना के बँगले। वहाँ लम्बे लॉन हैं, झाड़ियों से घिरे हुए, पेड़ों से घिरे हुए। वे जामुन के पेड़ हैं, जो बारिश के दिनों में पकते हैं, टपाटप नीचे गिरते हैं। ज़रा ऊपर देखो, तो बुगुबगोलिया के फूल दिखाई देंगे, लाल और सुर्ख, बँगलों को अपनी लपटों में लपेटे हुए।" (एक चिथड़ा सुख-निर्मल वर्मा)
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Samajkibaat समाज
की बात
सोमवार, 11 मार्च 2019
सेवासदन-प्रेमचन्द
"वसंत के समीर और ग्रीष्म की लू में कितना अंतर है। एक सुखद और प्राणपोषक, दूसरा अग्निमय और विनाशिनी। प्रेम वसंत-समीर है, द्वेष ग्रीष्म की लू। जिस पुष्प को वसंत-समीर महीनों में खिलाती है, उसे लू का एक झोंका जलाकर राख कर देता है।" "तुम सच कहती हो, बेशक हिंदू जाति अधोगति को पहुंच गई, और अब तक वह कभी की नष्ट हो गई होती, पर हिंदू स्त्रियों ही ने अभी तक उसकी मर्यादा की रक्षा की है। उन्हीं के सत्य और सुकीर्ति ने उसे बचाया है। केवल हिंदुओं की लाज रखने के लिए लाखों स्त्रियां आग में भस्म हो गई हैं। यही वह विलक्षण भूमि है, जहां स्त्रियां नाना प्रकार के कष्ट भोग कर, अपमान और निरादर सहकर पुरुषों की अमानुषीय क्रूरताओं को चित्त में न लाकर हिंदू जाति का मुख उज्ज्वल करती थीं। यह साधारण स्त्रियों का गुण था और ब्राह्मणियों का तो पूछना ही क्या?" (सेवासदन-प्रेमचन्द)
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#हिंदीसाहित्य #साहित्य #कृष्णधरशर्मा
Samajkibaat समाज
की बात
शनिवार, 9 मार्च 2019
पुरुष का अधिकार
पुरुष को नहीं है अधिकार, नैतिक रूप से
सबके सामने खुलकर रोने का
वैसे भी, घर में दादी, नानी, माँ सहित
तमाम बडे-बुजुर्गों का कहना यही रहा है
कि, पुरुषों का रोना अपशकुन होता है
या पुरुष भी कभी रोते हैं भला!
इन सब बातों का यह कत्तई मतलब नहीं है
कि, उसके पास आंसुओं की कमी है
या वह कम भावुक है बनिस्बत स्त्री के
इकठ्ठा होते-होते भर चुका होता है
उसके भी आंसुओं का बांध, मगर
वह जानता है कि उसके रोते ही
टूट सकती हैं कई सारी उम्मीदें
धराशायी हो सकते हैं सपनों के महल
जो एक ही रात में नहीं देखे गए हैं
वह नहीं कर पाता है साहस
उन सपनों को तोड़ पाने का
जिन्हें देखने में लगी हैं कई जोड़ी आँखें
और कितनी ही रातें
वह नहीं व्यक्त कर पाता
कभी-कभी अपनी थकन भी
क्योंकि दिनभर काम की
जद्दोजहद के बाद भी, उससे
रहती हैं कई अपेक्षाएं और आशाएं
बहुत ही मुश्किल लगता है उसे
उन्हें नजरंदाज कर पाना
फिर, वह बिखेरता है अपने चेहरे पर
एक बनावटी और सजावटी मुस्कान
ताकि, उसकी थकावट देखकर
थक न जाएं कितनी ही उम्मीदें
(कृष्णधर शर्मा 05/02/2019)
स्त्री ही ऐसी हो सकती
samaj ki baat
समाज की बात